tag:blogger.com,1999:blog-7410930008299767137.post58573676419707350..comments2023-04-11T08:26:07.032-07:00Comments on विजय अग्रवाल: दूसरों के सुख में अपना सुख ढूंढेंविजय अग्रवालhttp://www.blogger.com/profile/17725858409969629837noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7410930008299767137.post-20192072262419016942009-05-18T08:25:00.000-07:002009-05-18T08:25:00.000-07:00आप के विचार आंदोलित करते हैं.
हम एक दूसरे से इसलिए...आप के विचार आंदोलित करते हैं.<br />हम एक दूसरे से इसलिए भी जुड़े हैं क्योंकि नैसर्गिक रूप से हम स्वार्थी हैं और स्वार्थ की पूर्ती करना हमारा मूल प्राकृतिक स्वाभाव है.स्वार्थ को यदि ठीक तरीके से और गहनता से समझ लिया जाएतो हम एक दुसरे के स्वार्थ को सम्मान की दृष्टी से देख पायेंगे.परमार्थ मेरे दृष्टिकोण में स्वयं के स्वार्थ का विस्तार है.यदि मैं अपने स्वार्थ का इतना विस्तार कर दूँ की यह पूरा ब्रम्हाण्ड ही मेरा है तो फिर मुझ से कोई पराया कैसे हो सकता है..?<br /> समस्या आज यह है की हमने अपने आप का विस्तार छोड़ कर,स्वयं को सिकोड़ना शुरू कर दिया है और इतना सिकोड़ लिया कि वो स्वयं के शरीर तक ही सीमित होता जा रहा है.<br />मेरे इस विचार पर अपनी टिप्पणी दीजियेगा.राजेन्द्र मालवीयhttps://www.blogger.com/profile/00520473733396680219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7410930008299767137.post-21833260527690873412009-05-18T00:16:00.000-07:002009-05-18T00:16:00.000-07:00प्रेरक पोस्ट। जानकारी के लिए आभार।
-Zakir Ali ‘...प्रेरक पोस्ट। जानकारी के लिए आभार।<br /><br /><br /><A HREF="http://alizakir.blogspot.com/" REL="nofollow">-Zakir Ali ‘Rajnish’</A> <br /><A HREF="http://tasliim.blogspot.com/" REL="nofollow">{ Secretary-TSALIIM </A><A HREF="http://sciblogindia.blogspot.com/" REL="nofollow">& SBAI }</A>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com