बुधवार, 29 अप्रैल 2009
ईमानदारी की खोज-ख़बर
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
जैसी होगी चेतना वैसा ही होगा हमारा जीवन
‘किसी देश की अर्थव्यवस्था के स्तर को मापने का स्केल सेंसेक्स होता है और महंगाई को मापने का पैमाना थोक मूल्य सूचकांक। तो क्या डॉ. विजय अग्रवाल साहब, इसी तरह जीवन के स्तर को मापने का भी कोई मीटर है क्या?’
जिंदगी के बारे में अर्थव्यवस्था की भाषा में पहली बार मेरे सामने यह प्रश्न हाजिर किया गया था और वह भी किसी एक बहुत बड़े उद्योगपति द्वारा। हालांकि मैं इस तरह के प्रश्न के लिए तैयार बिलकुल भी नहीं था, फिर भी मेरे मुंह से जो उत्तर निकला वह यह था कि ‘हां भाई साहब, है। हम चेतना के जिस स्तर पर रहते हैं, वही हमारे जीवन का स्तर होता है। और चेतना के उस स्तर को बड़ी आसानी से मापा जा सकता है।’
हालांकि फिर इस विषय पर अभी तक उनसे कोई बात नहीं हो पाई है, लेकिन मेरी खुद से लगातार बात होती रही है और इस बात का निचोड़ मुझे यही मिला है कि ‘जैसी हमारी चेतना होती है, वैसा ही होता है हमारा जीवन।’
इसे हम सभी अपनी-अपनी जिंदगियों में कभी भी और तत्काल, जी हां, यहां तक कि अभी तुरंत इसकी जांच कर सकते हैं। यह बिजली के स्विच के ऑन-ऑफ की तरह काम करता है कि ऑन करते ही रोशनी और ऑफ करते ही अंधेरा। अपनी चेतना को बंधनों से मुक्त करके उसे फैलाइए।
उसे घटिया सोच से ऊपर उठाइए। उसे विचारों के प्रदूषण से मुक्ति दिलाकर शुरू कीजिए। थोड़ा-सा आजाद करके देखिए तो उसे बार-बार। शेष सारी चीजें ज्यों की त्यों रहने पर भी आपका अंतर्मन दीपावली से भी अधिक रोशनी से इस तरह नहा उठेगा कि आप अचंभित रह जाएंगे। बस, यही एहसास तो जिंदगी है मेरे मित्र। अन्यथा आप ही मुझे बताइए कि फिर यह है क्या?
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
समस्याएं मूलत: हमारी इच्छाएं हैं
मैं आज आपसे समस्याओं के संबंध में कुछ बातें करने जा रहा हूं, यह जानते हुए भी कि हो सकता है कि आज की यह बातचीत आपकी समस्याओं को और भी बढ़ा तथा उलझा दे।
यदि ऐसा है भी, तो मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूंगा कि यदि आप मेरी इन बातों पर थोड़ा गौर फरमाकर उन पर कुछ लंबे वक्त तक सोच-विचार करेंगे, तो आपको अपनी ढेर सारी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा। तो आइए, देखते हैं कि वे कुछ मुख्य बातें क्या हैं-
1. जिन्हें हम समस्या समझते हैं, वे समस्याएं होती ही नहीं हैं, वे मूलत: हमारी इच्छाएं होती हैं।
2. यदि कुछ समस्याएं होती भी हैं, तो वे दूसरों के कारण नहीं होतीं। उन समस्याओं के कारण हम खुद ही होते हैं।
3. अधिकांश लोग समस्याओं को सुलझाना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें उसके साथ जीने की आदत पड़ जाती है।
4. कोई भी समस्या ऐसी नहीं होती, जिसका समाधान न हो, बशर्ते हम उसे सुलझाना चाहें। अधिकांश लोग उसे सुलझाने के बजाय सुलझाते हुए केवल दिखना चाहते हैं।
5. मुश्किल यह भी है कि कुछ लोग इन्हें सुलझाना तो दूसरों के जरिए चाहते हैं, लेकिन चाहते हैं कि उसे उनके ही तरीके से सुलझाया जाए। वे यह भूल जाते हैं कि यदि उसे उनके ही तरीके से सुलझाया जा सकता होता, तो उन्होंने खुद ही सुलझा लिया होता।
6. हमारी जिंदगी की एक बड़ी समस्या है कि हम समस्यारहित जीवन की उम्मीद करते हैं, जो संभव ही नहीं है, क्योंकि जीवन के होने का आभास और प्रमाण ही यह है कि समस्याएं हैं।
7. लोग जब समस्याओं को सुलझाते हैं, तो उन्हें इस तरह सुलझाते हैं कि समस्या तो सुलझ जाती है, लेकिन इसके बदले में वह कई नई समस्याएं पैदा कर जाती है।
काश! को अपने जीवन में स्थान न दें
चूक छोटी-सी होती है और एक बड़ी चीज होते-होते रह जाती है। ये जिंदगी के ऐसे और इतने बड़े हादसे होते हैं, जो दिखाई तो नहीं देते, लेकिन इन्हें जो कुछ भी तहस-नहस करना होता है, कर जाते हैं।
दतिया के एक नौजवान को रणजीत क्रिकेट संघ के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. माधवराव सिंधिया ने बुलवाया। उससे चूक हो गई। वह नहीं गया। इसके साथ ही उसका क्रिकेट भी हमेशा-हमेशा के लिए चला गया। हम क्यों चूक जाते हैं, इसके कई-कई कारण होते हैं। भय, संकोच, जड़ता, आलस्य, टालने की आदत, ईगो जैसी कोई भी बात इसका कारण हो सकती है।
हमारे इस तरह के अवगुण हमसे चूक ही नहीं कराते, बल्कि हमारे विकास के रास्ते पर स्पीड ब्रेकर की तरह पसर-पसरकर हमारी स्पीड को बेहद कम भी कर देते हैं। आपकी मुलाकात जरूर कुछ ऐसे लोगों से हुई होगी, जिन्हें नमस्कार करने तक में संकोच होता है। एक साहब को तो अपनी मम्मी की पसंद की लड़की से सात फेरे इसलिए लेने पड़े, क्योंकि संकोच के कारण वे अपनी पसंद की लड़की के सामने इजहार-ए-इश्क नहीं कर सके। बाद में उन्होंने बताया कि ‘मुझे यह भी डर लग रहा था कि वह ‘ना’ न कर दे।’ अब वे इस जुगाड़ में हैं कि क्या उलटे फेरे नहीं पड़ सकते?
फिल्म ‘चलते-चलते’ में शाहरुख रानी मुखर्जी का पीछा करते-करते एथेंस पहुंच जाते हैं। रानी उनसे पूछती है कि ‘तुम जानते हो कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। फिर भी तुम यहां क्यों आए हो?’ शाहरुख जवाब देता है ‘मैं बाद में यह सोचना नहीं चाहता कि काश, मैंने ऐसा किया होता।’ ऐसे साहसी लोगों से कभी कोई चूक नहीं होती।
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009
अवसरों की उपेक्षा न करें
सकारात्मक सोच बदलेगी जीवन
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वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहाँ कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुँढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे।
क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था। लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया।
इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुँचाती है।
सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुँचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आपके अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैंकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैंकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएँ नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी।
आप जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे, उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल तैयार होता चला जाएगा। यही वह व्यक्तित्व होगा, जो अपने परीक्षण की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरेगा-24 कैरेट स्वर्ण की तरह।
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
क्या करें खाली वक्त का
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