‘किसी देश की अर्थव्यवस्था के स्तर को मापने का स्केल सेंसेक्स होता है और महंगाई को मापने का पैमाना थोक मूल्य सूचकांक। तो क्या डॉ. विजय अग्रवाल साहब, इसी तरह जीवन के स्तर को मापने का भी कोई मीटर है क्या?’
जिंदगी के बारे में अर्थव्यवस्था की भाषा में पहली बार मेरे सामने यह प्रश्न हाजिर किया गया था और वह भी किसी एक बहुत बड़े उद्योगपति द्वारा। हालांकि मैं इस तरह के प्रश्न के लिए तैयार बिलकुल भी नहीं था, फिर भी मेरे मुंह से जो उत्तर निकला वह यह था कि ‘हां भाई साहब, है। हम चेतना के जिस स्तर पर रहते हैं, वही हमारे जीवन का स्तर होता है। और चेतना के उस स्तर को बड़ी आसानी से मापा जा सकता है।’
हालांकि फिर इस विषय पर अभी तक उनसे कोई बात नहीं हो पाई है, लेकिन मेरी खुद से लगातार बात होती रही है और इस बात का निचोड़ मुझे यही मिला है कि ‘जैसी हमारी चेतना होती है, वैसा ही होता है हमारा जीवन।’
इसे हम सभी अपनी-अपनी जिंदगियों में कभी भी और तत्काल, जी हां, यहां तक कि अभी तुरंत इसकी जांच कर सकते हैं। यह बिजली के स्विच के ऑन-ऑफ की तरह काम करता है कि ऑन करते ही रोशनी और ऑफ करते ही अंधेरा। अपनी चेतना को बंधनों से मुक्त करके उसे फैलाइए।
उसे घटिया सोच से ऊपर उठाइए। उसे विचारों के प्रदूषण से मुक्ति दिलाकर शुरू कीजिए। थोड़ा-सा आजाद करके देखिए तो उसे बार-बार। शेष सारी चीजें ज्यों की त्यों रहने पर भी आपका अंतर्मन दीपावली से भी अधिक रोशनी से इस तरह नहा उठेगा कि आप अचंभित रह जाएंगे। बस, यही एहसास तो जिंदगी है मेरे मित्र। अन्यथा आप ही मुझे बताइए कि फिर यह है क्या?
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Kanishka Kashyap
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