शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

काश! को अपने जीवन में स्थान न दें


चूक छोटी-सी होती है और एक बड़ी चीज होते-होते रह जाती है। ये जिंदगी के ऐसे और इतने बड़े हादसे होते हैं, जो दिखाई तो नहीं देते, लेकिन इन्हें जो कुछ भी तहस-नहस करना होता है, कर जाते हैं।

दतिया के एक नौजवान को रणजीत क्रिकेट संघ के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. माधवराव सिंधिया ने बुलवाया। उससे चूक हो गई। वह नहीं गया। इसके साथ ही उसका क्रिकेट भी हमेशा-हमेशा के लिए चला गया। हम क्यों चूक जाते हैं, इसके कई-कई कारण होते हैं। भय, संकोच, जड़ता, आलस्य, टालने की आदत, ईगो जैसी कोई भी बात इसका कारण हो सकती है।

हमारे इस तरह के अवगुण हमसे चूक ही नहीं कराते, बल्कि हमारे विकास के रास्ते पर स्पीड ब्रेकर की तरह पसर-पसरकर हमारी स्पीड को बेहद कम भी कर देते हैं। आपकी मुलाकात जरूर कुछ ऐसे लोगों से हुई होगी, जिन्हें नमस्कार करने तक में संकोच होता है। एक साहब को तो अपनी मम्मी की पसंद की लड़की से सात फेरे इसलिए लेने पड़े, क्योंकि संकोच के कारण वे अपनी पसंद की लड़की के सामने इजहार-ए-इश्क नहीं कर सके। बाद में उन्होंने बताया कि ‘मुझे यह भी डर लग रहा था कि वह ‘ना’ न कर दे।’ अब वे इस जुगाड़ में हैं कि क्या उलटे फेरे नहीं पड़ सकते?

फिल्म ‘चलते-चलते’ में शाहरुख रानी मुखर्जी का पीछा करते-करते एथेंस पहुंच जाते हैं। रानी उनसे पूछती है कि ‘तुम जानते हो कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। फिर भी तुम यहां क्यों आए हो?’ शाहरुख जवाब देता है ‘मैं बाद में यह सोचना नहीं चाहता कि काश, मैंने ऐसा किया होता।’ ऐसे साहसी लोगों से कभी कोई चूक नहीं होती।

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