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किसी मनोवैज्ञानिक ने कहा था कि- 'मुझे यह बता दीजिए कि अमुक व्यक्ति अपने खाली समय को बिताता किस प्रकार है, मैं यह बता दूँगा कि वह किस तरह का व्यक्ति है।' मैं जब कभी थोड़े-बहुत समय के लिए खाली होता हूँ तो मुझे उस मनोवैज्ञानिक का यह वाक्य याद आने लगता है और मैं तुरंत ही सतर्क हो जाता हूँ।
मुझे ऐसा लगने लगता है कि मानो कि इस खाली वक्त में कोई न कोई मुझे देख रहा है। और यदि मैंने कोई गलत काम किया तो निश्चित रूप से मुझे देखने वाला यह व्यक्ति बाहर जाकर दुनिया को चिल्ला-चिल्लाकर बता देगा कि मैं क्या गलत काम कर रहा था। इसलिए मैं कोई भी गलत काम करने से बच जाता हूँ। क्या आप नहीं समझते कि यह एक बहुत बड़ी बात है?
हालाँकि मैं मानकर तो यह चलता हूँ कि यदि कोई सचमुच में युवक है तो उसके पास खाली समय होगा नहीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि युवक का मतलब है- ऊर्जा से भरपूर रहना। और जो व्यक्ति ऊर्जा से भरपूर रहेगा, उसके पास भला खाली समय बच ही कैसे सकता है, क्योंकि ऊर्जा का तो यह स्वभाव ही होता है कि वह हमेशा बाहर आने को बेताब रहती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि युवाओं के पास एकदम ही खाली समय नहीं होता।
कुछ न कुछ खाली समय तो ठीक उसी तरह बच ही जाता है, जैसे कि रेत के ढेर के बीच-बीच में छुटी हुई थोड़ी-थोड़ी जगह। तो मेरा आपसे यहाँ केवल यह अनुरोध है कि आप कभी समय निकालकर थोड़ी गंभीरता के साथ यह सोचें कि आप अपने इस खाली वक्त का इस्तेमाल कैसे करते हैं? इसकी एक छोटी-सी सूची बनाएँ। इसके बाद उस सूची का मनोवैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करें।
विश्लेषण इस रूप में करें कि क्या मुझे अपने खाली समय का इस्तेमाल इसी प्रकार करना चाहिए? खुद से यह प्रश्न करें कि क्या मेरे पास कोई और विकल्प है, जहाँ मैं अपने खाली समय का इस्तेमाल कर सकता हूँ? यह भी जानने की कोशिश करें कि खाली समय का इस तरह इस्तेमाल करने से मुझे कितना लाभ है और कितना नुकसान। इस कसौटी पर आप अपने खाली समय के इस्तेमाल को कसकर अपने लिए कुछ अच्छे निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
जहाँ तक मेरा अपना विश्लेषण है, उसके आधार पर मैंने पाया है कि अधिकांश युवा अपने खाली समय को 'मौज-मस्ती करने का समय' के रूप में लेते हैं। विश्वास कीजिए कि इस मौज-मस्ती से मेरा न तो कोई विरोध है, न ही ऐतराज। आप जीवन के जिस पड़ाव पर हैं, वहाँ थोड़ी-बहुत मौज-मस्ती जरूरी जैसी है। यदि आप नहीं कर रहे हैं, तब यह बात थोड़ी-सी अटपटी होगी अन्यथा ऐसा होना ही चाहिए। लेकिन गड़बड़ी वहाँ होती है, जब यह मौज- मस्ती ही आपके जीवन के केंद्र में आ जाती है।
मैं इस बारे में आपको जापान के महान फिल्म निर्देशकअकीरा कुरोसाबा के कथन की याद दिलाना चाहूँगा, जो उन्होंने अपने शिष्यों से कहे थे। कुरोसाबा ने कहा था- 'मौज मनाओ, खूब उल्लास मनाओ। लेकिन याद रखो कि यदि वह सीमा से बाहर चला जाता है, तो वह अश्लील बन जाता है।' बस यहीं पर आकर खतरे की घंटी बजनेलगती है अन्यथा मौज-मस्ती आपकी क्षमताओं को बढ़ाने का काम करती है, उसे नष्ट करने का नहीं। जरूरत केवल इस बात की है कि उसमें एक संयम हो, अनुशासन हो।
गर्मी के दिनों में प़ढ़ने वाले युवा अपने स्कूल और कॉलेज से मुक्त हो चुके होते हैं। अन्य कामों में लगे युवकों के पास भी इस वक्त खाली समय थोड़ा अधिक हो जाता है। वैसे भी सूरज का 5 बजे से लेकर 7 बजे तक चमकना अपने आप में खाली वक्त के खजाने में इजाफा करता है। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे इस बारे में युवाओं के सामने कुछ अच्छे विकल्प रखने चाहिए कि वे अपने खाली समय का इस्तेमाल किस प्रकार कर सकते हैं। ऐसे विकल्पों में कुछ अच्छे विकल्प हो सकते हैं। 1. थोड़ा समय कुछ अच्छी पुस्तकों को पढ़ने में लगाएँ। महान व्यक्तियों की जीवनियाँ पढ़ना विशेषकर लाभप्रद हो सकता है। 2.यदि आपके नगर में कुछ रचनात्मक पाठ्यक्रम चल रहे हों तो उनमें दाखिला ले सकते हैं। 3.यदि आप में कलात्मक रुचि है, तो कुछ समय उनको विकसित करने के लिए दें। 4.पर्यटन शिक्षा का जीवंत माध्यम है। इस समय का उपयोग आप इसके लिए कर सकते हैं। 5.यदि आप चाहें तो किसी सामाजिक विषय पर आप कोई प्रोजेक्ट अपने हाथों में ले सकते हैं। 6.यदि संभव हो तो 2-3 महीने के लिए किसी भी तरह का पार्ट टाइम जॉब करना बेहतर ही होगा। इसके लिए आप यह न सोचें कि अमुक काम मेरे लायक नहीं है। काम, काम होता है फिर चाहे वह कोई भी काम क्यों न हो। 7. आप कुछ समय प्रकृति के सान्निध्य में गुजारने को दे सकते हैं। 8.यदि आपको ग्रामीण जीवन का अनुभव नहीं है, तो यह अनुभव प्राप्त करने का एक बेहतर अवसर सिद्ध हो सकता है। 9. यदि आपको अँगरेजी नहीं आती या कम आती है, तो आप इस दौरान उसे अच्छा करके इस कुंठा से मुक्त हो सकते हैं। 10.यह एक अच्छा वक्त है, जब आप अपनी अन्य उन कमियों को पूरा कर सकते हैं जिनके लिए अन्यथा समय नहीं मिल पाता।
मैं समझता हूँ कि यदि ईश्वर किसी को खाली वक्त देता है, तो वह इसलिए नहीं देता कि उसे यूँ ही जाने दिया जाए या सोकर गँवा दिया जाए। यह एक प्रकार से क्षतिपूर्ति करने का सर्वोत्तम अवसर होता है। यही वह समय होता है, जब हम अपनी कलात्मक भूख को पूरा कर सकतेहैं। केवल पूरा ही नहीं कर सकते, बल्कि उसे बिना किसी दबाव के आनंद के साथ पूरा कर सकते हैं।
यह कभी न भूलें कि कलात्मक भावनाओं का विकास स्वतंत्रता के वातावरण में ही होता है और युवाओं के लिए गर्मी की छुट्टी से बढ़कर अन्य किसी भी स्वतंत्र वातावरण की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए आपको चाहिए कि आप इसे प्रकृति के द्वारा दिया गया एक पुरस्कार, एक अमूल्य भेंट मानकर इसे माथे से लगाएँ और इसका इस्तेमाल अपने जीवन की तरक्की के लिए करें।
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