मंथन के मोती, भाग - ११
मंथन के मोती के श्रद्धालु दर्शकों को मेरा प्रणाम।
आज मैं आपके सामने एक बहुत ही व्यावहारिक बात रखने जा रहा हूँ। मुझे आशा है कि इसे आप सभी अपने-अपने जीवन में लागू करके अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उपयोग में लाएंगे।
भगवद्गीता के बारे में तो आप जानते ही हैं। आपने इसे पढ़ा होगा। यदि पढ़ा न हो, तो इसके बारे में सुना जरूर होगा। यह पूरे विश्व को कर्म का सन्देश देने वाला श्रेष्ठतम् ग्रन्थ है। कर्म ही पूजा है और निष्काम कर्म ही सच्चा संन्यास है, इस आदर्श की स्थापना गीता ने की है।
जब हम कर्म की बात करते हैं तो ज्यादातर होता यह है कि केवल काम की ही बात होती रहती है। हम यह भूल जाते हैं कि किसी भी काम को करने का अपना एक तरीका भी होता है। इसी तरीके को हमारे शास्त्रों में विज्ञान कहा गया है। ऋग्वेद में ज्ञान और विज्ञान दोनों शब्द आए हैं। वहाँ ज्ञान का अर्थ है-जानकारी तथा विज्ञान का अर्थ है-उस जानकारी का उपयोग करना। इस प्रकार हम विज्ञान को एप्लायड नालेज कह सकते हैं।
यहाँ यह स्पष्ट है कि यदि हम ज्ञान का उपयोग नहीं कर रहे हों, तो वह व्यर्थ है। ज्ञान का उपयोग हम तभी कर सकते हैं, जब कोई काम करें। और कोई काम तभी पूरा हो सकता है, जब उसे वैज्ञानिक ढंग से किया जाए। जब हम कोई भी काम चाहे; वह झाडू लगाने, बर्तन मांजने और कपड़े धोने का ही काम क्यों न हो, सही तरीके से करते हैं, तो न केवल वह काम जल्दी होता है बल्कि अच्छा भी होता है। यह कम बड़ी बात नहीं है। जब काम जल्दी होता है और अच्छे तरीके से होता है, तो हमें उस काम को करने में ऊब नहीं होती। बल्कि इसके विपरीत उस काम में आनन्द आने लगता है। यदि किसी काम को करने में आनन्द आने लगे तो इससे बड़ा उपहार भला और क्या हो सकता है।
तो आइए, सुनते हैं धोबी और मुनीम की एक छोटी-सी कहानी।
एक सेठ जी के यहाँ एक मुनीम जी और एक धोबी था। धोबी गधों पर कपड़े लादकर नदी जाता। गठरी भर कपड़े धोता और फिर लादकर घर वापिस आता। उसका पूरा दिन खप जाता था इसमें। जबकि मुनीम जी दस बजे आते। दिन भर आराम से गद्दी पर बैठे रहते और दिन ढलने के बाद घर चले जाते। धोबी को बहुत कम पैसा मिलता था जबकि मुनीम जी को उससे बहुत ज्यादा।
धोबी को यह बात अन्यायपूर्ण लगी। उसने सेठजी से इस बात की शिकायत की कि मुनीम दिन भर बैठा रहता है, जबकि मैं दिन भर जमकर मेहनत करता हूँ। फिर भी मुझे मुनीम से बहुत कम पैसे मिलते हैं।
एक दिन सेठजी ने धोबी को बुलाया और कहा कि नगर में एक बारात आयी हुई है। जाकर पता करो कि कितने लोग आए हैं। धोबी गया और आकर बताया कि दो सौ लोग आए हैं। सेठ जी ने पूछा कि बारात कहाँ से आयी है? धोबी फिर से गया और आकर बताया कि ‘‘रामपुर से आयी है।’’ सेठ जी ने पूछा कि बारात किसके यहाँ आयी है? धोबी फिर से गया और लौटकर बोला-‘‘सेठ चन्दूलाल के यहाँ आयी है। सेठ जी ने फिर पूछा कि ‘‘बारात रामपुर कब लौटेगी? धेाबी फिर गया और वापस आकर बोला कि परसों।
उसी के सामने सेठजी ने मुनीम को बुलाया और कहा कि-‘‘मुनीम जी पता करके बताइए कि बारात में कितने लोग आए हैं?’’ मुनीम जी गए और लौटकर बोले कि ‘‘दो सौ लोग। इसके बाद सेठ जी ने वही-वही सारे प्रश्न मुनीम से पूछे जो धोबी से पूछे थे। मुनीम जी ने सभी प्रश्नों के उत्तर तुरन्त दे दिए। यहाँ तक कि जब सेठ जी ने और अधिक जानना चाहा, तो उन सभी के जवाब भी मुनीम के पास मौजूद थे। धोबी यह सब देख रहा था। उसने सेठ जी से माफी मांगते हुए कहा कि ‘‘सेठ जी मैं समझ गया कि मुनीम जी की तनख्वाह मुझसे ज्यादा क्यों है।’’
यह कहानी भले ही दादा-आदम के जमाने की क्यों न हो, लेकिन है बहुत काम की। हमें दूसरों की थाली में तो ज्यादा घी दिखता है लेकिन हम इस पर कभी विचार नहीं करते कि हमारी थाली में घी क्यों नहीं है। हमें कुछ समय यह सोचने में भी लगाना चाहिए कि हम जो काम कर रहे हैं, कैसे उसे और बेहतर तरीके से करें। इसे ही आज की भाषा में कहा जाता है-वैल्यू एडीशन करना। यही तरीका हमारी कीमत बढ़ाकर हमें उन्नति के शिखर पर पहुँचा सकता है। अन्यथा यदि हम कोल्हू के बैल की तरह लगे रहेंगे, तो काम तो होता रहेगा, जिन्दगी भी चलती रहेगी, लेकिन उसमें वह गुणवत्ता नहीं आएगी, जो वास्तव में आनी चाहिए।
तो आज की बात यहीं तक। आपसे फिर मिलेंगे। तब तक के लिए मेरा नमस्कार स्वीकार करें।
नोट- डॉ॰ विजय अग्रवाल के द्वारा दिया गया यह वक्तव्य जी न्यूज़ पर प्रतिदिन सुबह प्रसारित होने कार्यक्रम 'मंथन'में दिया गया था। उनका यह कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय है।
VERY VERY VALUABLE THOUGHT.
जवाब देंहटाएंTHANKS FOR ALL THIS
BLOG PAR KUCHH LINES PADHI NAHI JA RAHI KARAN SAMAJHA NAHI AAYA,
LEKH SARA PADH LIYA H.
RAMESH SACHDEVA (DIRECTOR)
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