रविवार, 5 जुलाई 2009

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

मंथन के मोती, भाग - १२
सादर नमस्कार। मंथन के मोतियों की थैली में से एक मोती लेकर आज फिर आपके सामने उपस्थित हूं। आज के इस ‘मंथन के मोती’ में हम समय के महत्त्व के बारे में जानना चाहेंगे।
समय को हमारे यहाँ काल कहा गया है। काल यानी कि मृत्यु। मृत्यु यानी कि सबसे बड़ा, जिससे कोई नहीं बच पाया, सिवाय ब्रह्मा, विष्णु और महेश के। तभी तो उज्जैन के शिव को महाकाल कहा गया है।
समय ही तो एक ऐसी वस्तु है, जिसको देने में भगवान तक को समान दृष्टि रखनी पड़ी है। भगवान ने सभी को एक जितना ही समय दिया है, चाहे वह सम्राट हो या सारथी। वहाँ बँटवारे में कोई भेदभाव दिखाई नहीं पड़ता। जो भेद हमें दिखाई देता है, वह इस बात के कारण कि किस व्यक्ति न अपने समय का कितना और किस तरह से उपयोग किया है। जिसने समय को एक बहुत बड़ी पूँजी समझकर उसका तरीके से उपयोग किया, वह सम्राट बन गया और जिसने उसे यूँ ही जाने दिया, वह सारथी रह गया।
इसीलिए तो संत कबीर ने लगभग साढे पाँच सौ साल पहले हम सभी को चेताते हुए कहा था-
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करोगे कब।
जितने भी महान लोग हुए हैं, उन्होंने कबीरदास के इस दोहे को आत्मसात कर लिया था। वे किसी भी काम को कल के ऊपर टालते नहीं थे। ऐसे महान लोगों में महाभारत के पात्र कर्ण भी शामिल थे। तो आइए, सुनते हैं महादानी कर्ण से जुड़ी यह छोटी-सी घटना-
एक बार की बात है। कर्ण अपने दरबार में बैठे हुए थे। उसी समय उनके दरबार में एक याचक आया। याचक ने अपने हाथ फैलाकर कर्ण से दान मांगा। कर्ण उस समय कुछ काम कर रहे थे। याचक की आवाज सुनते ही कर्ण ने अपना बायां हाथ उठाया और उससे अपने गले का हार निकालकर याचक को दे दिया।
कर्ण के इस कृत्य को एक दरबारी देख रहा था। उसने आपत्ति जताते हुए कहा-‘‘महाराज, अपराध क्षमा हो। आप जानते ही हैं कि बाएं हाथ से दान नहीं दिया जाना चाहिए। जानते हुए भी आपने यह अधर्म क्यों किया?’’ कर्ण ने उत्तर दिया-‘‘याचक ने जब मुझसे दान मांगा, उस समय मेरे आसपास मेरे गले के हार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। उस समय मेरा दायां हाथ व्यस्त था। हो सकता था कि यदि मैं दाएं हाथ को खाली करके दान देने की सोचता तो इतने समय में ही मेरा मन बदल जाता और मैं अपना हार उतारकर उस याचक को नहीं दे पाता। कौन जाने कि पल भर में क्या हो सकता है। इसलिए मैंने अपने बाएं हाथ से ही अपने हार का दान कर दिया।’’आप सोच सकते हैं कि जो व्यक्ति एक-एक पल को इतना महत्त्व देता हो, उसके लिए जीवन में ऊँचाइयाँ छू जाना कोई कठिन नहीं रह जाता।
मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप एक बार इसे आजमाकर देखें। करना आपको केवल यह है कि जिस काम को आप तुरन्त कर सकते हों, उसे तुरन्त कर डालें। टालें नहीं।
अपने दिन भर के समय की एक योजना बना लें कि क्या-क्या करना है। इन कामों की प्राथमिकता निश्चित कर लें और फिर उन्हें करने लगें।
आप केवल ये दो तरीके अपनाएं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपकी ढेर सारी दिमागी परेशानियाँ इसी से कम हो जाएंगी। कुछ तो बिल्कुल खत्म ही हो जाएंगी। समय पर आपका नियंत्रण हो जाएगा और जैसे ही यह होगा, आपको अपने कामों में मज़ा आने लगेगा।
आज के मंथन में इतना ही। आप हमें अपने विचारों से अवगत कराएं कि यह मोती आपको कैसे लग रहे हैं। इससे हमें मदद मिलेगी। नमस्कार।
नोट- डॉ॰ विजय अग्रवाल के द्वारा दिया गया यह वक्तव्य जी न्यूज़ पर प्रतिदिन सुबह प्रसारित होने कार्यक्रम 'मंथन' में दिया गया था। उनका यह कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय है।

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