बुधवार, 29 अप्रैल 2009

ईमानदारी की खोज-ख़बर



एक दिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा जी के साथ किसी मुद्दे पर बातचीत हो रही थी। उस समय मैं उनका निजी सचिव था। उस समय उन्होंने मुझे एक रोचक, साथ ही बहुत जोरदार बात बताई थी। उसे मैं आज आप सबके साथ शेयर कर रहा हूं। 
उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री बनाया जाना था। तब पंडित जवाहर लाल नेहरु देश के प्रधानमंत्री थे। पंडित नेहरु ने डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा जी से पूछा कि ” किसे उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना ठीक रहेगा।” डॉ॰. शर्मा ने मोहम्मद रफी किदवई जी का नाम सुझाया। इस पर पंडित नेहरु ने जानना चाहा कि किदवई साहब क्यों? डॉ॰ शर्मा ने कहा कि ”किदवई साहब एक ईमानदार नेता हैं।” यह सुनते ही पंडित नेहरु उत्तेजित हो गये। वे बोले ”शंकर, तो क्या तुम ईमानदारी को एक बड़ा गुण मानते हो। इसमें ऐसी बड़ी बात क्या है? यह तो होनी ही चाहिए।”डॉ॰ शर्मा कुछ नहीं बोल सके और पंडित नेहरु ने उनके द्वारा सुझाये गये नाम को रिजेक्ट कर दिया।
अब आप, यानी कि मेरे प्रिय पाठक, बताइये कि क्या सचमुच में ईमानदार होना कोई महान गुण है? मुझे लगता है कि पंडित नेहरु बिल्कुल सही थे। जैसे आग का गुणधर्म होता है-जलाना और हवा का गुणधर्म होता है-बहना, ठीक वैसे ही व्यक्ति का गुणधर्म होता है-ईमानदार होना। लेकिन यह सरल-सहज गुण इसलिए एक विशेष गुण बन गया है, क्योंकि अब ऐसे लोग मिलने मुष्किल हो गये हैं। अन्यथा तो यह एक सामान्य सी ही बात है। क्या ऐसा नहीं है? 
दूसरे यह कि जब हम ’ईमानदारी’ की बात करते हैं, तो ईमानदारी का अर्थ क्या होता है? चोरी न करना ईमानदारी है। लेकिन क्या चोर के द्वारा सावधानीपूर्वक चोरी करना, अच्छी तरह से सोच-समझकर चोरी करना उसकी ईमानदारी नहीं है? यदि अपने कार्य को लगन एवं निष्ठापूर्वक करना ईमानदारी का एक लक्षण है तो फिर हमें चोर की ईमानदारी को अलग तरह से परिभाषित करना पड़ेगा। 
मैं यहां इस लेख के द्वारा आपसे ईमानदारी पर आपकें विचार आमंत्रित करता हूं कि क्या होती है ईमानदारी। और इस बात की शरूआत मैं अपनी इस  परिभाषा से करता हूं कि ”जिनसे चेतना की परिभाषा दूषित हो, उन कार्यों और विचारों से दूर रहना ही ईमानदारी है।”
मुझे आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

डॉ॰ विजय अग्रवाल

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

जैसी होगी चेतना वैसा ही होगा हमारा जीवन

‘किसी देश की अर्थव्यवस्था के स्तर को मापने का स्केल सेंसेक्स होता है और महंगाई को मापने का पैमाना थोक मूल्य सूचकांक। तो क्या डॉ. विजय अग्रवाल साहब, इसी तरह जीवन के स्तर को मापने का भी कोई मीटर है क्या?’

जिंदगी के बारे में अर्थव्यवस्था की भाषा में पहली बार मेरे सामने यह प्रश्न हाजिर किया गया था और वह भी किसी एक बहुत बड़े उद्योगपति द्वारा। हालांकि मैं इस तरह के प्रश्न के लिए तैयार बिलकुल भी नहीं था, फिर भी मेरे मुंह से जो उत्तर निकला वह यह था कि ‘हां भाई साहब, है। हम चेतना के जिस स्तर पर रहते हैं, वही हमारे जीवन का स्तर होता है। और चेतना के उस स्तर को बड़ी आसानी से मापा जा सकता है।’

हालांकि फिर इस विषय पर अभी तक उनसे कोई बात नहीं हो पाई है, लेकिन मेरी खुद से लगातार बात होती रही है और इस बात का निचोड़ मुझे यही मिला है कि ‘जैसी हमारी चेतना होती है, वैसा ही होता है हमारा जीवन।’

इसे हम सभी अपनी-अपनी जिंदगियों में कभी भी और तत्काल, जी हां, यहां तक कि अभी तुरंत इसकी जांच कर सकते हैं। यह बिजली के स्विच के ऑन-ऑफ की तरह काम करता है कि ऑन करते ही रोशनी और ऑफ करते ही अंधेरा। अपनी चेतना को बंधनों से मुक्त करके उसे फैलाइए।

उसे घटिया सोच से ऊपर उठाइए। उसे विचारों के प्रदूषण से मुक्ति दिलाकर शुरू कीजिए। थोड़ा-सा आजाद करके देखिए तो उसे बार-बार। शेष सारी चीजें ज्यों की त्यों रहने पर भी आपका अंतर्मन दीपावली से भी अधिक रोशनी से इस तरह नहा उठेगा कि आप अचंभित रह जाएंगे। बस, यही एहसास तो जिंदगी है मेरे मित्र। अन्यथा आप ही मुझे बताइए कि फिर यह है क्या?

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

समस्याएं मूलत: हमारी इच्छाएं हैं

मैं आज आपसे समस्याओं के संबंध में कुछ बातें करने जा रहा हूं, यह जानते हुए भी कि हो सकता है कि आज की यह बातचीत आपकी समस्याओं को और भी बढ़ा तथा उलझा दे।

यदि ऐसा है भी, तो मैं आपको विश्वास दिलाना चाहूंगा कि यदि आप मेरी इन बातों पर थोड़ा गौर फरमाकर उन पर कुछ लंबे वक्त तक सोच-विचार करेंगे, तो आपको अपनी ढेर सारी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा। तो आइए, देखते हैं कि वे कुछ मुख्य बातें क्या हैं- 

1. जिन्हें हम समस्या समझते हैं, वे समस्याएं होती ही नहीं हैं, वे मूलत: हमारी इच्छाएं होती हैं।

2. यदि कुछ समस्याएं होती भी हैं, तो वे दूसरों के कारण नहीं होतीं। उन समस्याओं के कारण हम खुद ही होते हैं।

3. अधिकांश लोग समस्याओं को सुलझाना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें उसके साथ जीने की आदत पड़ जाती है।

4. कोई भी समस्या ऐसी नहीं होती, जिसका समाधान न हो, बशर्ते हम उसे सुलझाना चाहें। अधिकांश लोग उसे सुलझाने के बजाय सुलझाते हुए केवल दिखना चाहते हैं।
5. मुश्किल यह भी है कि कुछ लोग इन्हें सुलझाना तो दूसरों के जरिए चाहते हैं, लेकिन चाहते हैं कि उसे उनके ही तरीके से सुलझाया जाए। वे यह भूल जाते हैं कि यदि उसे उनके ही तरीके से सुलझाया जा सकता होता, तो उन्होंने खुद ही सुलझा लिया होता।
6. हमारी जिंदगी की एक बड़ी समस्या है कि हम समस्यारहित जीवन की उम्मीद करते हैं, जो संभव ही नहीं है, क्योंकि जीवन के होने का आभास और प्रमाण ही यह है कि समस्याएं हैं।
7. लोग जब समस्याओं को सुलझाते हैं, तो उन्हें इस तरह सुलझाते हैं कि समस्या तो सुलझ जाती है, लेकिन इसके बदले में वह कई नई समस्याएं पैदा कर जाती है।

काश! को अपने जीवन में स्थान न दें


चूक छोटी-सी होती है और एक बड़ी चीज होते-होते रह जाती है। ये जिंदगी के ऐसे और इतने बड़े हादसे होते हैं, जो दिखाई तो नहीं देते, लेकिन इन्हें जो कुछ भी तहस-नहस करना होता है, कर जाते हैं।

दतिया के एक नौजवान को रणजीत क्रिकेट संघ के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. माधवराव सिंधिया ने बुलवाया। उससे चूक हो गई। वह नहीं गया। इसके साथ ही उसका क्रिकेट भी हमेशा-हमेशा के लिए चला गया। हम क्यों चूक जाते हैं, इसके कई-कई कारण होते हैं। भय, संकोच, जड़ता, आलस्य, टालने की आदत, ईगो जैसी कोई भी बात इसका कारण हो सकती है।

हमारे इस तरह के अवगुण हमसे चूक ही नहीं कराते, बल्कि हमारे विकास के रास्ते पर स्पीड ब्रेकर की तरह पसर-पसरकर हमारी स्पीड को बेहद कम भी कर देते हैं। आपकी मुलाकात जरूर कुछ ऐसे लोगों से हुई होगी, जिन्हें नमस्कार करने तक में संकोच होता है। एक साहब को तो अपनी मम्मी की पसंद की लड़की से सात फेरे इसलिए लेने पड़े, क्योंकि संकोच के कारण वे अपनी पसंद की लड़की के सामने इजहार-ए-इश्क नहीं कर सके। बाद में उन्होंने बताया कि ‘मुझे यह भी डर लग रहा था कि वह ‘ना’ न कर दे।’ अब वे इस जुगाड़ में हैं कि क्या उलटे फेरे नहीं पड़ सकते?

फिल्म ‘चलते-चलते’ में शाहरुख रानी मुखर्जी का पीछा करते-करते एथेंस पहुंच जाते हैं। रानी उनसे पूछती है कि ‘तुम जानते हो कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। फिर भी तुम यहां क्यों आए हो?’ शाहरुख जवाब देता है ‘मैं बाद में यह सोचना नहीं चाहता कि काश, मैंने ऐसा किया होता।’ ऐसे साहसी लोगों से कभी कोई चूक नहीं होती।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

अवसरों की उपेक्षा न करें





अपने युग की इस प्रवृत्ति को आप तब तक नहीं पहचान सकते, जब तक कि आप अपने दिमाग को खुला नहीं रखेंगे। किसी को भी कभी भी यह समझने की भूल नहीं करनी चाहिए कि वह सब कुछ जानता है और अब उसे कुछ भी जानने की जरूरत नहीं है । मैं नहीं समझता कि इससे भी बड़ी नासमझी की कोई अन्य बात हो सकती है । क्या आप किसी की इतनी बड़ी नासमझी पर इतनी आसानी से यकीन कर सकेंगे? शायद नहीं। दुनिया में ऐसे कितने शख्स होंगे, जिनको बिल गेट्स को सुनने का अवसर मिल सका होगा और भविष्य में भी मिल सकेगा। क्या इस अमूल्य अवसर की कीमत एक थोड़े से बेहतर किस्म की जर्सी से भी कम है।  
आज हम सब जिस दुनिया में रह रहे हैं, वह इस मायने में अब तक की सबसे अद्भुत दुनिया है कि अब विचार ही सबसे बड़ी संपत्ति बन गई है। स्वयं बिल गेट्स ने अपनी सफलता का राज बताते हुए कहा था-
'अपने युग की प्रवृत्ति को पहचानना ही मेरी सफलता का रहस्य है।'  
रघुवीर सहाय फिराक गोरखपुरी कहा करते थे कि कुछ लोग आने वाली पीढ़ियों के सामने यह कहकर गर्व महसूस करेंगे कि 'हमने फिराक को देखा था।' मैं समझता हूँ कि निश्चित रूप से वर्तमान के कुछ लोग भविष्य की पीढ़ियों के सामने यह बताकर गर्व महसूस करेंगे कि 'हमने बिल गेट्स को देखा और सुना है।'  
मित्रों, वैसे तो बिल गेट्स को या दुनिया के किसी भी महान से महान और लोकप्रिय से लोकप्रिय व्यक्ति को आज आप रेडियो पर सुन सकते हैं और टीवी पर देख सकते हैं। लेकिन जब हम इन्हीं को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने देखते हैं, तो उसका महत्व लाख गुना बढ़ जाता है। अन्यथा शाहरुख खान और ऐश्वर्या राय को नृत्य करते हुए तो आप फिल्म और टीवी के पर्दे पर तो देखते ही हैं। तो आखिर ऐसा कौन-सा कारण होता है कि मंच पर देखने के लिए लोग हजारों रु. खर्च करके मीलों लंबी यात्रा करते हुए तकलीफ उठाकर आते हैं?  
कारण साफ है कि जब वह व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति जो हमारी चेतना और अवचेतन में गहरे रूप से बसा है, उसे सामने पाकर मन खुशी से नहीं बल्कि आह्लाद से झूम उठता है। चूँकि मुझे खुद इसका बहुत बड़ा अनुभव है, इसलिए मैं इस बात को पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ। लगभग पन्द्रह साल पहले मैं दुनिया के जिन महान लोगों से मिला था, आज उनकी स्मृति और अपने लेखन में बार-बार उनका उल्लेख करना मेरी सबसे बड़ी पूँजी बन गई है। माइक्रोसॉफ्ट की जर्सी लेकर बिल गेट्स को बिना सुने लौट जाने वाले इन लोगों ने अपनी छोटी-सी लापरवाही और बेवकूफी के कारण अपनी जिंदगी की एक बहुत बड़ी पूँजी को हमेशा-हमेशा के लिए गँवा दिया है। मैं जानता हूँ कि उन्हें इस बात का कोई अफसोस नहीं होगा। लेकिन दोस्तों, मुझे इसका बहुत बड़ा अफसोस है। इसीलिए तो मैं इस विषय पर लिख रहा हूँ, ताकि जब कभी आपके सामने ऐसे मौके आएँ तो आप इसे पकड़ने से चूके नहीं। दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं। पहले तो वे होते हैं, जो अपने युग की प्रवृत्तियों को कभी भी नहीं पहचान पाते। जो कुछ जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे, यह इनका दृष्टिकोण होता है। दूसरे, वे लोग होते हैं, जो अपने युग की प्रवृत्तियों को उसी समय समझ जाते हैं, जिस समय वह प्रवृत्ति मौजूद रहती है। बिल गेट्स इसी श्रेणी में हैं। सन् 1970 के आसपास वे समझ गए थे कि कम्प्यूटर के युग में सॉप्टवेयर की क्या अहमियत होगी और बस, इसी को उन्होंने पकड़ लिया और आज वे जो कुछ भी हैं इसी की बदौलत हैं। तीसरी श्रेणी में वे लोग होते हैं, जो युग की प्रवृत्ति को युग से बहुत पहले ही पकड़ लेते हैं। मैं धीरूभाई अंबानी जैसे लोगों को इसी श्रेणी में मानता हूँ। मित्रों, दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है, इतनी तेजी से कि इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। आगे इसकी तेजी की रफ्तार और बढ़ने वाली है। ऐसे समय में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हम अपने सोचने-समझने की ताकत को और अपनी दूरदृष्टि को इतना अधिक गतिमान करें कि उसका तालमेल इस बदलती हुई दुनिया की गति के साथ ठीक-ठाक बैठ सके। यदि आप ऐसा नहीं कर पाएँगे, तो निश्चित जानिए कि आप पिछड़ जाएँगे। आपकी परंपरागत सोच, तकनीक का पिछड़ापन और ढीली-ढाली जीवन पद्धति आपको सुकून की जिंदगी तो दे सकती है,लेकिन सफलता की जिंदगी नहीं और जब हम बिल गेट्स जैसे लोगों को अपने सामने खड़े होकर व्याख्यान देते हुए देखते हैं, तो इससे हमारे विचारों को एक नई दिशा और नई गति मिलती है और यह नई दिशा और नई गति हमारी जिंदगी को बदलने में अपना अहम् रोल निभाती है। आपको ऐसे अवसरों की उपेक्षा भूलकर भी नहीं करनी चाहिए।

सकारात्मक सोच बदलेगी जीवन


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मेरे प्यारे युवा साथियों, आप सब ने नकारात्मक और सकारात्मक सोच के बारे में न केवल ढेर सारे लेख ही पढ़े होंगे, बल्कि जीवन-प्रबंधन से जुड़ी छोटी-मोटी और मोटी-मोटी किताबें भी पढ़ी होंगी। जब आप इन्हें पढ़ते हैं, तो तात्कालिक रूप से आपको सारी बातें बहुत सही और प्रभावशाली मालूम पड़ती हैं और यह सच भी है। लेकिन कुछ ही समय बाद धीरे-धीरे वे बातें दिमाग से खारिज होने लगती हैं और हमारा व्यवहार पहले की तरह ही हो जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी।

गलती मूलतः हममें खुद में होती है। हम अपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानी से पाया जा सकता है।

मैंने इसे बहुत गहराई से महसूस किया है और मैं उम्मीद करता हूँ कि इसे आप भी महसूस करते होंगे कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इस तरह यदि हम यह नतीजा निकालना चाहें कि मूलतः अनुभव ही जीवन है, तो शायद गलत नहीं होगा।

आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारेमें सोचकर देखिए। मुझे पक्का भरोसा है कि आप यही पाएँगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।

आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियॉं अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती है।

पता नहीं आप इस बात पर कितना विश्वास करते हैं, किंतु मैं तो लगभग 100 प्रतिशत ही यह विश्वास करता हूँ कि हमारी जिंदगी की 90 प्रतिशत समस्याएँ हमारी नकारात्मक सोच की देन होती हैं। जीवन की तो मात्र 10 प्रतिशत ही समस्याएँ होती हैं।

इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुँचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है।

जैसे ही नींद खुली वे यह सोचकर दुखी हो गए कि उस दिन तो मेरी जेब में एक-एक रुपए के दस सिक्के थे, यदि मैं दसों सिक्के भिखारी को दे देता तो आज मेरे पास सोने की मुहरों की दस थैलियाँ होतीं। अगली सुबह वे फिर मंदिर गए और वही भिखारी उन्हें मिला। वे अपने साथ सोने की सौ मुहरें लेकर गए ताकि इसके बदले उन्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिल सके। उन्होंने वे सोने की मुहरें भिखारी को दे दी।

वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहाँ कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुँढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे।

क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था। लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया।

इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुँचाती है।

सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुँचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आपके अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैंकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैंकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएँ नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी।

आप जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे, उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल तैयार होता चला जाएगा। यही वह व्यक्तित्व होगा, जो अपने परीक्षण की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरेगा-24 कैरेट स्वर्ण की तरह।


शनिवार, 11 अप्रैल 2009

क्या करें खाली वक्त का






किसी मनोवैज्ञानिक ने कहा था कि- 'मुझे यह बता दीजिए कि अमुक व्यक्ति अपने खाली समय को बिताता किस प्रकार है, मैं यह बता दूँगा कि वह किस तरह का व्यक्ति है।' मैं जब कभी थोड़े-बहुत समय के लिए खाली होता हूँ तो मुझे उस मनोवैज्ञानिक का यह वाक्य याद आने लगता है और मैं तुरंत ही सतर्क हो जाता हूँ।

मुझे ऐसा लगने लगता है कि मानो कि इस खाली वक्त में कोई न कोई मुझे देख रहा है। और यदि मैंने कोई गलत काम किया तो निश्चित रूप से मुझे देखने वाला यह व्यक्ति बाहर जाकर दुनिया को चिल्ला-चिल्लाकर बता देगा कि मैं क्या गलत काम कर रहा था। इसलिए मैं कोई भी गलत काम करने से बच जाता हूँ। क्या आप नहीं समझते कि यह एक बहुत बड़ी बात है?

हालाँकि मैं मानकर तो यह चलता हूँ कि यदि कोई सचमुच में युवक है तो उसके पास खाली समय होगा नहीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि युवक का मतलब है- ऊर्जा से भरपूर रहना। और जो व्यक्ति ऊर्जा से भरपूर रहेगा, उसके पास भला खाली समय बच ही कैसे सकता है, क्योंकि ऊर्जा का तो यह स्वभाव ही होता है कि वह हमेशा बाहर आने को बेताब रहती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि युवाओं के पास एकदम ही खाली समय नहीं होता।

कुछ न कुछ खाली समय तो ठीक उसी तरह बच ही जाता है, जैसे कि रेत के ढेर के बीच-बीच में छुटी हुई थोड़ी-थोड़ी जगह। तो मेरा आपसे यहाँ केवल यह अनुरोध है कि आप कभी समय निकालकर थोड़ी गंभीरता के साथ यह सोचें कि आप अपने इस खाली वक्त का इस्तेमाल कैसे करते हैं? इसकी एक छोटी-सी सूची बनाएँ। इसके बाद उस सूची का मनोवैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करें।

विश्लेषण इस रूप में करें कि क्या मुझे अपने खाली समय का इस्तेमाल इसी प्रकार करना चाहिए? खुद से यह प्रश्न करें कि क्या मेरे पास कोई और विकल्प है, जहाँ मैं अपने खाली समय का इस्तेमाल कर सकता हूँ? यह भी जानने की कोशिश करें कि खाली समय का इस तरह इस्तेमाल करने से मुझे कितना लाभ है और कितना नुकसान। इस कसौटी पर आप अपने खाली समय के इस्तेमाल को कसकर अपने लिए कुछ अच्छे निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

जहाँ तक मेरा अपना विश्लेषण है, उसके आधार पर मैंने पाया है कि अधिकांश युवा अपने खाली समय को 'मौज-मस्ती करने का समय' के रूप में लेते हैं। विश्वास कीजिए कि इस मौज-मस्ती से मेरा न तो कोई विरोध है, न ही ऐतराज। आप जीवन के जिस पड़ाव पर हैं, वहाँ थोड़ी-बहुत मौज-मस्ती जरूरी जैसी है। यदि आप नहीं कर रहे हैं, तब यह बात थोड़ी-सी अटपटी होगी अन्यथा ऐसा होना ही चाहिए। लेकिन गड़बड़ी वहाँ होती है, जब यह मौज- मस्ती ही आपके जीवन के केंद्र में आ जाती है।

मैं इस बारे में आपको जापान के महान फिल्म निर्देशकअकीरा कुरोसाबा के कथन की याद दिलाना चाहूँगा, जो उन्होंने अपने शिष्यों से कहे थे। कुरोसाबा ने कहा था- 'मौज मनाओ, खूब उल्लास मनाओ। लेकिन याद रखो कि यदि वह सीमा से बाहर चला जाता है, तो वह अश्लील बन जाता है।' बस यहीं पर आकर खतरे की घंटी बजनेलगती है अन्यथा मौज-मस्ती आपकी क्षमताओं को बढ़ाने का काम करती है, उसे नष्ट करने का नहीं। जरूरत केवल इस बात की है कि उसमें एक संयम हो, अनुशासन हो।

गर्मी के दिनों में प़ढ़ने वाले युवा अपने स्कूल और कॉलेज से मुक्त हो चुके होते हैं। अन्य कामों में लगे युवकों के पास भी इस वक्त खाली समय थोड़ा अधिक हो जाता है। वैसे भी सूरज का 5 बजे से लेकर 7 बजे तक चमकना अपने आप में खाली वक्त के खजाने में इजाफा करता है। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे इस बारे में युवाओं के सामने कुछ अच्छे विकल्प रखने चाहिए कि वे अपने खाली समय का इस्तेमाल किस प्रकार कर सकते हैं। ऐसे विकल्पों में कुछ अच्छे विकल्प हो सकते हैं। 
1.  थोड़ा समय कुछ अच्छी पुस्तकों को पढ़ने में लगाएँ। महान व्यक्तियों की जीवनियाँ पढ़ना विशेषकर लाभप्रद हो सकता है। 
2.यदि आपके नगर में कुछ रचनात्मक पाठ्यक्रम चल रहे हों तो उनमें दाखिला ले सकते हैं।
3.यदि आप में कलात्मक रुचि है, तो कुछ समय उनको विकसित करने के लिए दें।
4.पर्यटन शिक्षा का जीवंत माध्यम है। इस समय का उपयोग आप इसके लिए कर सकते हैं।
5.यदि आप चाहें तो किसी सामाजिक विषय पर आप कोई प्रोजेक्ट अपने हाथों में ले सकते हैं।
6.यदि संभव हो तो  2-3  महीने के लिए किसी भी तरह का पार्ट टाइम जॉब करना बेहतर ही होगा। इसके लिए आप यह न सोचें कि अमुक काम मेरे लायक नहीं है। काम, काम होता है फिर चाहे वह कोई भी काम क्यों न हो।
7. आप कुछ समय प्रकृति के सान्निध्य में गुजारने को दे सकते हैं।
8.यदि आपको ग्रामीण जीवन का अनुभव नहीं है, तो यह अनुभव प्राप्त करने का एक बेहतर अवसर सिद्ध हो सकता है।
9. यदि आपको अँगरेजी नहीं आती या कम आती है, तो आप इस दौरान उसे अच्छा करके इस कुंठा से मुक्त हो सकते हैं।
10.यह एक अच्छा वक्त है, जब आप अपनी अन्य उन कमियों को पूरा कर सकते हैं जिनके लिए अन्यथा समय नहीं मिल पाता।

मैं समझता हूँ कि यदि ईश्वर किसी को खाली वक्त देता है, तो वह इसलिए नहीं देता कि उसे यूँ ही जाने दिया जाए या सोकर गँवा दिया जाए। यह एक प्रकार से क्षतिपूर्ति करने का सर्वोत्तम अवसर होता है। यही वह समय होता है, जब हम अपनी कलात्मक भूख को पूरा कर सकतेहैं। केवल पूरा ही नहीं कर सकते, बल्कि उसे बिना किसी दबाव के आनंद के साथ पूरा कर सकते हैं।

यह कभी न भूलें कि कलात्मक भावनाओं का विकास स्वतंत्रता के वातावरण में ही होता है और युवाओं के लिए गर्मी की छुट्टी से बढ़कर अन्य किसी भी स्वतंत्र वातावरण की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए आपको चाहिए कि आप इसे प्रकृति के द्वारा दिया गया एक पुरस्कार, एक अमूल्य भेंट मानकर इसे माथे से लगाएँ और इसका इस्तेमाल अपने जीवन की तरक्की के लिए करें।