सोमवार, 8 जून 2009

गहराई में जाने से मिलती है सफ़लता

मंथन के मोती, भाग - ४


नमस्कार। ‘‘मंथन के मोती’’ में आपका स्वागत है और अभिनन्दन भी। आज के इस एपीसोड में मैं जिन्दगी की एक बड़ी मजेदार बात आपसे करने जा रहा हूँ। आपने यह कहावत सुनी ही है कि ‘जिन खोजा तिन पाईयाँ गहरे पानी पैठ।’ इसका अर्थ बड़ा सीधा-सा है कि जो खोजता है, उसे मिल ही जाता है, बशर्ते कि वह थोड़े-से गहरे पानी में उतरे। हम लोग अक्सर अपने जीवन में जो असफल होने की शिकायत करते हैं, उसका कारण यही होता है कि हम पानी में तो उतरते हैं, लेकिन उसकी गहराई में नहीं उतर पाते। हम मेहनत तो करते हैं, लेकिन इतनी मेहनत नहीं करते, जितनी की जानी चाहिए। आप यह तो जानते हैं कि मोती न तो पानी की सतह पर होते हैं और न ही बीच में। वे तो समुद्र के तल में होते हैं, और यदि किसी को मोती पाने है, तो उसे समुद्र के तल तक उतरना होगा। स्पष्ट है कि तल तक पहुँचने के लिए साहस चाहिए, शक्ति चाहिए और धैर्य भी चाहिए।जिनके अन्दर साहस, शक्ति और धैर्य होता है, वे अपने जीवन की थैली में सफलताओं के न जाने कितने मोती इकट्ठा कर लेते हैं। इन लोगों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि ये किसी भी घटना को किसी भी बात को उलटे तरीके से न लेकर एकदम सीधे तरीके से लेते हैं। ये वे लोग होते हैं, जिनकी तरफ यदि आप पत्थर फेकेंगे, तो वे उन पत्थरों को इकट्ठा करके उसकी बाड़ बना लेंगे और यह बाड़ उनकी जिन्दगी की रक्षा करने वाली बन जाएगी।महान गायक भीमसेन जोशी का नाम आप जानते ही हैं। हो सकता है कि आप उनकी जिन्दगी की उस कहानी को न जानते हों, जिसने उन्हें गायक बनाया। तो आइए, सबसे पहले इस बात को जाने।भीमसेन जोशी पहलवान थे। एक बार वे अपनी रोटी पर ज्यादा घी लगवाना चाहते थे। इस पर उनकी माँ ने उन्हें डाँट दिया। वे घर से भाग गए, और संगीत के किसी गुरू की तलाश में तानसेन की नगरी ग्वालियर पहुँचे। उनके पास ट्रेन के किराए के पैसे नहीं थे। तब उन्होंने ट्रेन में गाकर यात्रियों से पैसे इकट्ठे करके किराया भरा। उस समय उनकी उम्र केवल दस साल थी।आपने शायद सोचा भी नहीं होगा कि पहलवान आदमी गायक बन सकता है और वह भी इतना मधुर गायक। दस साल का वह बच्चा अपनी माँ की डाँट पर कुछ भी गलत कदम उठा सकता था। आखिर दस साल के बच्चे को समझ होती ही कितनी है? लेकिन उस पहलवान बच्चे ने जो सही कदम उठाया, उसी की बदौलत आज हमारे देश के पास इतना महान गायक मौजूद है।दूसरी अन्य जो बात ध्यान देने की है, वह है संकोच का न होना। उन्होंने ट्रेन में पैसे इकट्ठे करने के लिए गाने में कोई झिझक नहीं दिखाई। उन्होंने अनुभव किया होगा कि वे गायक भी बन सकते हैं। गायक बनने की जन्मजात ललक उनके अन्दर रही होगी। बस जरूरत थी, उस ललक को प्रशिक्षित करने की और वही ललक उन्हें ग्वालियर ले गई अन्यथा वे और भी कहीं जा सकते थे।तो देखा आपने कि अपनी माँ की डाँट को किस प्रकार सही रूप में उन्होंने ग्रहण किया।

हमारे आज के बच्चों और नौजवानों के लिए उसमें एक जबर्दस्त सन्देश छिपा हुआ है, जिसे हमें उन्हें बताना चाहिए।आज की बात अब यहीं तक। आपसे फिर भेंट होगी।


विजय अग्रवाल, मोबाइल - ०९४२५०१०२५४


नोट- डॉ॰ विजय अग्रवाल के द्वारा दिया गया यह वक्तव्य जी न्यूज़ पर प्रतिदिन सुबह प्रसारित होने कार्यक्रम 'मंथन'में दिया गया था. डॉ॰ विजय अग्रवाल का यह कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय है.

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