आज के मंथन के मोती में मैं एक ऐसी रोचक और सच्ची कहानी लेकर आया हूँ, जिसके कई-कई पात्र हैं और ये सभी पात्र आपके जाने-पहचाने हैं। ये आपके श्रद्धेय भी हैं। साथ ही इस एक कहानी में ही आपको कई-कई सन्देश मिलेंगे। इस एक कहानी की थैली में ही आपको कई अच्छे-अच्छे मोती प्राप्त होंगे। तो इससे पहले कि मैं आपको उन मोतियों का परिचय दूँ, ज्यादा अच्छा होगा कि आप इस कहानी को सुनें-
बात 19६2 की है। चीन के हमले के बाद दिल्ली के जिस कार्यक्रम में लता मंगेशकरजी ने ‘ए मेरे वतन के लोगों’ गाया था, उसके अगले दिन उन्हें पंडित नेहरू ने प्रधानमंत्री आवास पर चाय के लिए आमंत्रित किया। वे वहाँ पहुँची, तो इंदिरा जी और उनके दोनों बेटों; राजीव और संजय ने उनसे आग्रह किया कि वे कल वाला गीत सुनाएं। लता जी ने साफ कह दिया कि ‘‘मैं तो किसी के घर में गाती नहीं हूँ।’’ पंडित जी ने कहा ‘इंदु, तू क्यों इस लड़की को परेशान कर रही है।’ इंदिरा जी का जवाब था-‘पापा, बच्चे सो गए थे कल रात को। उन्होंने सुना नहीं।’’ नेहरू जी ने कहा, जब रिकार्ड बनकर आएगा, तब सुना देना।’’
लेकिन जब प्रसिद्ध फिल्मकार महबूब खान बहुत बीमार थे, और कैलिफोर्निया के एक अस्पताल में भर्ती थी, तब दिलीप कुमार की सूचना पर लताजी ने महबूब को फोन लगाया। बीमार पड़े महबूब ने फरमाइश की कि वे उन्हें फिल्म ‘अलबेला’ का गीत ‘धीरे से आ जा री अखियन में, निंदिया आ जा तू आ जा, धीरे से आजा’’ सुना दें, तो लता जी ने बिना किसी हील-हुज्जत के फौरन वह गीत गा दिया। इसी तरह उन्होंने कवि प्रदीप और पंडित नरेन्द्र शर्मा के सामने खुद जाकर गीत सुनाए हैं।
मुझे विश्वास है कि यह सच्ची घटना आपको जरूर अच्छी लगी होगी। अब आइए, देखते हैं कि यह एक घटना कौन-सी कई-कई बातें कहती है -
१. पहली बात तो यह कि लता जी ने अपने इस सिद्धान्त से समझौता नहीं किया कि ‘मैं किसी के घर में नहीं गाती।’ उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू जी के घर तक भी अपने इस सिद्धान्त को बनाए रखा।
२. दूसरी बात यह कि नेहरू जी उस समय देश के प्रधानमंत्री थे। यदि वे लता जी से फिर से आग्रह करते, तो शायद लता जी द्वन्द्व में पड़ जातीं। लेकिन पंडित नेहरू की महानता देखिए कि उन्होंने अपनी उम्र से बहुत छोटी गायिका की भावनाओं और सिद्धान्तों का सम्मान करते हुए उन पर गाने के लिए दबाव नहीं डाला। यह कम बड़ी बात नहीं थी।
३. तीसरा यह कि पंडित नेहरू के घर पर गीत न गाने वाली उन्हीं लता मंगेशकर को जब फिल्मकार महबू खान के लिए फोन पर गाना पड़ा तो उन्होंने बिना समय लगाए तुरन्त ही एक गीत सुना भी दिया। यानी कि लता जी ने अपने उस सिद्धान्त में इतना लचीलापन रखा कि कहाँ इसका उपयोग किया जाना चाहिए और कहाँ नहीं। यहाँ उनका गीत गीत न होकर एक तरह से महबूब खान के लिए आत्मा की खुराक था। साथ ही इस गीत के माध्यम से वे महबूब खान के प्रति अपनी श्रद्धा भी व्यक्त करना चाहती थीं।
तो देखा आपने कि महान लोगों की किस प्रकार की जुगलबंदियाँ हुआ करती हैं। ये लोग कठोर भी हैं, लेकिन अन्दर से कितने कोमल भी। इन लोगों को बहुत से लोगों का सम्मान इसलिए मिलता है क्योंकि ये खुद दूसरे लोगों का सम्मान करते हैं। ये लोग महान इसलिए हैं, क्योंकि ये मनुष्यता के महत्त्व को जानते हैं।
आज बस इतना ही। मंथन के मोती में आपसे फिर भेंट होगी। नमस्कार। हम चाहेंगे कि आप इस कार्यक्रम के बारे में हमें लिखें। इससे हमें खुशी होगी, और मदद भी मिलेगी।
नोट- डॉ॰ विजय अग्रवाल के द्वारा दिया गया यह वक्तव्य जी न्यूज़ पर प्रतिदिन सुबह प्रसारित होने कार्यक्रम 'मंथन'में दिया गया था। उनका यह कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय है।
नयी पीढ़ी के लिये अनुकरणीय दृष्टांत
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