‘अब तो उसकी बेटी की शादी में जाना ही पड़ेगा,’ उनकी इस निर्णायक घोषणा ने मुझे चौंका दिया, क्योंकि अभी तक वे वही ठानकर बैठे हुए थे कि ‘मुझे नहीं जाना रंजना की शादी में।’ इस लौहपुरुष ने आखिर कैसे इतनी जल्दी अपने फैसले को पिघला दिया, मुझे इसका कारण जानने की बेहद बेचैनी होने लगी। मुझे इसका जो उत्तर मिला, उसे सुनकर मैं दंग रह गया। उनका छोटा-सा उत्तर था- ‘अभी-अभी शादी की दस्ती चिट्ठी आई है।’
‘दस्ती चिट्ठी’ यानी कि ‘हाथ से लिखी हुई चिट्ठी।’ तो क्या सचमुच हाथ से लिखी चिट्ठी में इतनी आंच होती है कि वह ‘न जाने’ के लोहे को पिघलाकर ‘जाने’ में तब्दील कर देती है? होती है, तभी तो यह हुआ। आगे भी होती रहेगी, तभी तो मैं यह बात आप सब तक पहुंचा रहा हूं।
दोस्तो! यहां सवाल दस्ती चिट्ठी का नहीं, बल्कि भावना के उस अद्भुत और अतुल स्पर्श का है, जिसे हम आम शब्दावली में ‘पर्सनल टच’ कहते हैं। ई-मेल, एसएमएस, ग्रीटिंग कार्ड और मोबाइल के इस महंगे जमाने में भी हाथ से लिखी हुई चिट्ठी की चाहत आदमी की उस मूल आस्था से जुड़ी हुई है, जिससे वह विमुख नहीं होना चाहता। इसलिए यह छोटी-सी घटना, यह छोटी-सी दस्ती चिट्ठी विराट रोबोट के विरोध में फहराती रहने वाली विजय पताका की तरह हम सभी के दिल और दिमाग में हमेशा-हमेशा के लिए रच-बस गई है।
‘पर्सनल टच’ की ताकत को पहचानने वाले जानते हैं कि वे काम जिन्हें धन, पद, शक्ति और लाखों तर्क-वितर्क नहीं कर पाते, उसे यह कर दिखाता है। प्रकृति ने हमें यह यूं ही दिया है। हमें इसे यूं ही नहीं जाने देना है।
नोट - यह आलेख दैनिक भास्कर में बुधवार, १९ नवम्बर , २००८ को प्रकाशित हो चूका है.
‘दस्ती चिट्ठी’ यानी कि ‘हाथ से लिखी हुई चिट्ठी।’ तो क्या सचमुच हाथ से लिखी चिट्ठी में इतनी आंच होती है कि वह ‘न जाने’ के लोहे को पिघलाकर ‘जाने’ में तब्दील कर देती है? होती है, तभी तो यह हुआ। आगे भी होती रहेगी, तभी तो मैं यह बात आप सब तक पहुंचा रहा हूं।
दोस्तो! यहां सवाल दस्ती चिट्ठी का नहीं, बल्कि भावना के उस अद्भुत और अतुल स्पर्श का है, जिसे हम आम शब्दावली में ‘पर्सनल टच’ कहते हैं। ई-मेल, एसएमएस, ग्रीटिंग कार्ड और मोबाइल के इस महंगे जमाने में भी हाथ से लिखी हुई चिट्ठी की चाहत आदमी की उस मूल आस्था से जुड़ी हुई है, जिससे वह विमुख नहीं होना चाहता। इसलिए यह छोटी-सी घटना, यह छोटी-सी दस्ती चिट्ठी विराट रोबोट के विरोध में फहराती रहने वाली विजय पताका की तरह हम सभी के दिल और दिमाग में हमेशा-हमेशा के लिए रच-बस गई है।
‘पर्सनल टच’ की ताकत को पहचानने वाले जानते हैं कि वे काम जिन्हें धन, पद, शक्ति और लाखों तर्क-वितर्क नहीं कर पाते, उसे यह कर दिखाता है। प्रकृति ने हमें यह यूं ही दिया है। हमें इसे यूं ही नहीं जाने देना है।
नोट - यह आलेख दैनिक भास्कर में बुधवार, १९ नवम्बर , २००८ को प्रकाशित हो चूका है.
बहुत अच्छी पोस्ट, सर! निवेदन है कि कृपया पोस्ट के alignment को justified कर दिया करें.
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