शुक्रवार, 15 मई 2009

मंथन के मोती, भाग - 1




       मित्रों आज मैं एक ऐसे विषय पर लिख रहा हूँ, जो हम सभी के जीवन में बहुत अहम स्थान रखता है। साथ ही यह विषय ऐसा है, जिसका अनुभव हम सभी कभी-न-कभी करते ही हैं। खूब करते हैं और इसलिए इसे अच्छी तरह जानते भी हैं। यह विषय है-प्रेम का विषय। इसी प्रेम को कबीरदास ने ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय’ कहकर ज्ञान के सबसे ऊँचे शिखर पर रख दिया था।
    प्रेम इस ब्रह्माण्ड को, इस संसार को और हम सभी को एक-दूसरे से जोड़ने वाला सबसे प्रमुख तत्व है। अभी आप जो यह कार्यक्रम देख रहे हैं, वह भी इसलिए देख रहे हैं, क्योंकि आपको यह अच्छा लगता है और हमें वही चीज़ अच्छी लगती है, जिससे हमें प्रेम होता है। इसलिए प्रेम को एक ऐसा जोड़ने वाला तत्व माना गया है, जो रहता तो हर स्थान पर है, भले ही दिखाई कहीं भी न दे।
     अधिकांश लोग प्रेम को केवल रोमांटिक प्रेम के रूप में लेते हैं। जबकि इसके कई-कई रूप होते हैं। माँ-बेटे का प्रेम, पति-पत्नी का प्रेम, मित्रों का आपस में प्रेम, गुरू-शिष्य का प्रेम, ईश्वर से प्रेम, देश-प्रेम, अपने काम से प्रेम, अपने-आपसे प्रेम तथा न जाने और भी कौन-कौन के बीच और किस-किस तरह के प्रेम। एक क्षण के लिए आप कल्पना करके देखिए कि यदि प्रेम के इस तत्व को इस पृथ्वी से गायब कर दिया जाए, तो क्या होगा?
प्रेम जोड़ने वाली शक्ति तो है ही। यह काम कराने वाली शक्ति भी है। बल्कि यह कहना गलत नहीं होगा कि यह एक ऐसी शक्ति है, जो यदि एक बार हमारे अन्दर आ जाए, तो बड़े से बड़े काम भी हमें बौने नज़र आने लगते हैं। यह वह आग होती है, जो जब एक बार धधक जाती है, तो सोने की लंका तक को पिघला सकती है। इसमें हमारे अन्दर की सोयी हुई शक्ति और अनजानी क्षमताओं को जागृत करने की अद्भुत क्षमता होती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि दो तरह के प्रेम सबसे अधिक अनुभव किए गए हैं और हमारे यहाँ इनकी सबसे अधिक चर्चा भी हुई है। ये दो तरह के प्रेम हैं-ईश्वर के प्रति प्रेम तथा देह के प्रति प्रेम। तो आइए, अब हम यहाँ देह के प्रति एक ऐसे प्रेम की अद्भुत क्षमता की एक कहानी सुनते हैं, जिसने मानव कल्याण का एक अद्भुत संसार हमारे लिए रच दिया-
         
 इंसुलिन के आविष्कारक डॉ॰ फ्रेडरिक बैंटिग बचपन में कनाड़ा के एक फार्म पर रहा करते थे। जेनी नाम की एक हम उम्र लड़की उनकी अभिन्न मित्र थी। जेनी उनके साथ हॉकी और बेसबाल खेलती, स्केटिंग करती, दौड़ लगाती और उनके साथ ही पेड़ों पर चढ़ा करती थी। फिर गर्मियों में अचानक एक दिन जेनी खेलने नहीं आई। पता लगा कि मधुमेह की बीमारी के कारण उसकी मृत्यु हो गई है। फ्रेडरिक इस हादसे को कभी भूल नहीं पाए। पेशे के लिए उन्होंने चिकित्सा विज्ञान को चुना। आज लाखों मधुमेह रोगी सिर्फ इसलिए जिन्दा हैं, क्योंकि फ्रेडरिक को जेनी से प्रेम था।
     तो देखा आपने कि किस तरह जेनी के प्रति प्रेम की भावना ने हम सबके लिए कितने महान आविष्कार को जन्म दे दिया।
     प्रिय पाठकों  यही प्रेम सच्चा प्रेम है और यही प्रेम की सबसे बड़ी शक्ति भी है। इस प्रेम का, इस महान और उदात्त भावना का इस बात से कुछ भी लेना-देना नहीं होता कि जिससे आप प्रेम कर रहे हैं, वह आपके पास है या नहीं। इसका तो केवल इस बात से लेना-देना रहता है कि प्रेम की भावना आपके पास है। फिर चाहे जिससे आप प्रेम कर रहे थे, वह आपके पास भले ही न हो। यहाँ तक कि जिससे आप प्रेम कर रहे थे, भले ही वह भी आपसे प्रेम न करे। सबसे बड़ी बात होती है-प्रेम की भावना का होना और यदि यह सच्ची और पवित्र है, तो यह आपसे कुछ भी करा सकती है, यहाँ तक कि वह भी जिसकी आपने अभी तक कल्पना भी नहीं की थी,
अब बस इतना ही। ब्लॉग पर टिपण्णी कर अपने विचारों से जरुर अवगत कराएँ।
- डॉ॰ विजय अग्रवाल

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