उनकी उम्र बयालीस साल की हो गई थी, लेकिन वे अभी तक अपना बिजनेस जमा नहीं पाए थे। चूंकि वे मेरे चाचा थे, इसलिए मैंने उनके लिए मशीनों में इस्तेमाल होने वाली बेल्ट की एजेंसी के बारे में बात की। एजेंसी तकनीकी सामान की थी, इसलिए जरूरी पाया गया कि सेल्समैन को एक महीने के लिए फैक्ट्री में रखकर प्रशिक्षित किया जाए। मैंने चाचाजी से कहा कि चूंकि यह बिजनेस उनके लिए एकदम नया है, इसलिए बेहतर होगा कि वे खुद भी उसकी थोड़ी-बहुत ट्रेनिंग ले लें। वे मेरी इस सलाह पर भड़कते हुए बोले, ‘जहां मेरा नौकर ट्रेनिंग ले रहा हो, वहां मैं भी ट्रेनिंग कैसे ले सकता हूं?’दूसरी घटना रोमानिया की है। भारत और रोमानिया के राष्ट्रपति के बीच आधिकारिक स्तर की बातचीत चल रही थी और हम कई लोग बाहर के कमरे में बैठे हुए बातचीत खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। बातचीत के समाप्त होते ही रोमानिया के विदेश मंत्री हमारे कमरे में आए। उन्होंने हम सभी से पूरी गर्मजोशी से हाथ मिलाया, लेकिन हम सबके लिए चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्होंने उस कमरे का दरवाजा खोलने वाले संतरी से भी उतनी ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया।इन दोनों घटनाओं के आधार पर इस सवाल का उत्तर आसानी से मिल सकता है कि इनमें लीडर बनने लायक कौन है-मेरे चाचाजी या रोमानिया के विदेश मंत्री? हम भारतीयों की चेतना अभी भी सामंतवादी सोच की शिकार है। जबकि नेतृत्व के लिए सबसे अधिक जरूरत इस बात की होती है कि आप अपना कितना अधिक से अधिक सरलीकरण कर सकते हैं। आप इतने अधिक साधारण बन जाएं कि साधारण से साधारण आदमी भी आपको अपना समझने लगे, तभी आप नेतृत्व करने की विशिष्टता को हासिल कर सकते हैं और यही सच्ची लीडरशिप है।
गुरुवार, 28 मई 2009
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आप इतने अधिक साधारण बन जाएं कि साधारण से साधारण आदमी भी आपको अपना समझने लगे, तभी आप नेतृत्व करने की विशिष्टता को हासिल कर सकते हैं और यही सच्ची लीडरशिप है।
जवाब देंहटाएं--और यही सच्ची मानवता का तकाजा भी.