मंगलवार, 19 मई 2009

‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या होगा किसने जाना’


मंथन के मोती, भाग-३ 
             ‘मंथन के मोतियों’ की थैली से एक चमकदार मोती लेकर मैं यानी डॉ॰ विजय अग्रवाल आप सबकी सेवा में आज फिर से उपस्थित हूँ। मुझे अपना आशीर्वाद दें और मेरा प्रणाम स्वीकार करें।
             आपने ‘अंदाज’ फिल्म का यह गीत कभी-न-कभी जरूर सुना होगा कि ‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या होगा किसने जाना।’ यह बहुत ही प्यारा और बहुत ही फिलासॉफीकल गीत है। इसमें हमारे जीवन के बहुत महत्त्वपूर्ण संदेशों को पिरोया गया है। इसकी पहली ही लाईन में दो बहुत बड़ी बातें कही गई हैं। पहली बात तो यह कि जिन्दगी का जो सफर है, वह सुहाना होता है, डरावना नहीं। जिन्दगी जो भी है और जैसी भी है, ऐसी है जिसे प्यार किया जाना चाहिए और भरपूर प्यार किया जाना चाहिए। जो कुछ भी हमारे सामने आता है, उसे खुले मन से स्वीकार किया जाना चाहिए। 
            दूसरी जोरदार बात यह कही गई है कि लाईफ अनप्रेडिक्टेबल है। इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। यह नहीं बताया जा सकता कि कल क्या होगा। यानी कि यदि हम इन दोनों ही बातों को जोड़ दें, तो यह एक ऐसी सुहावनी यात्रा बन जाएगी, जिसके बारे में हमें पता ही नहीं। अगला कौन-सा स्टेशन आने वाला है, स्टेशन आने वाला है भी या नहीं और हम यह भी नहीं जानते कि यह गाड़ी जाकर रुकेगी कहाँ।
आप सोचकर देखें कि यदि हम सचमुच ऐसी गाड़ी में बैठ जाएं, जिसके जाने के बारे में ही कुछ पता न हो, तो हमारे लिए कितनी मुश्किल हो जाएगी। लेकिन जीवन की गाड़ी एक ऐसी ही गाड़ी है, जिसके पहुँचने का ठौर-ठिकाना नहीं होने के बाद भी हमें यह यात्रा सुख देती है और यह सुख सही अर्थों में न जानने का सुख है। कहीं भी न पहुँचने का सुख है।
             आप स्वयं अपने जीवन की यात्रा के बारे में सोचकर देखिए कि आपने उसकी शुरुआत कैसे की थी और आज आप कहाँ हैं? आज आप जहाँ हैं, क्या शुरूआत करने वाले दिन आप जानते थे कि यहाँ पहुँच जाएँगे। यदि आपका उत्तर यह है कि ‘‘मैं नहीं जानता था’’, तो यही न जानना ही तो यही अननोननेस ही तो जिन्दगी की सबसे बड़ी खूबसूरती है।
            तो आइए, यहाँ हम जानते हैं कुछ ऐसे लोगों की जीवन-यात्रा के बारे में, जो चले तो कहीं के लिए थे, लेकिन पहुँच कहीं और गए।
१. हीरो अक्षय कुमार बैंकाक में कूक हुआ करते थे, और मार्शल आर्ट के शौक के कारण बालीवुड में आ गए.
२. गायक शंकर महादेवन साफ्टवेयर इंजीनियर थे, और अमेरीका की ओरेकल कम्पनी में काम करते थे।
३. फिल्मकार गुरूदत्त टेलीफोन आपरेटर थे।
४. ‘काँटा लगा’ गर्ल शेफाली जरीवाला इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी इंजीनियर हैं।
५. अमीषा पटेल ने एम.ए.अर्थशास्त्र में गोल्ड मैडल लिया है।
६. ‘मुगल-ए-आजम’ फेम जनाब आसिफ दर्जी थे।
७. लता मंगेशकर को पाश्र्व गायन का पहला मौका देने वाले संगीतकार गुलाम हैदर की घड़ियों की   मरम्मत की दुकान थी।
८. सुनील दत्त रेडियो सिलोन में अनाउंसर एवं प्रोग्राम-कम्पोजर थे।
९. म.प्र. के मुख्यमंत्री प्रकाशचन्द सेठी एक मिल में क्लर्क थे।
         क्या आपको आश्चर्य नहीं हुआ इन सबके अतीत को जानकर? लेकिन यहाँ जो सबसे ध्यान देने की बात है, वह यह कि ये सब ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि इन्होंने अपने-आपको अपने वर्तमान का गुलाम नहीं बनाया। ये अपने जीवन यात्रा को एक सुखद यात्रा मानते हुए, एक अनजानी यात्रा मानते हुए लगातार बेहतरी के लिए काम करते रहे। इन्होंने अपने जीवन में जोखिम मोल लिया। इन लोगों को अपने-आप पर भरोसा था कि हम कुछ अच्छा कर लेंगे। साथ ही इनमें यह साहस भी था कि यदि गिर भी गए, तो कोई बात नहीं। फिर से खड़े हो जाएंगे और दौड़ना शुरू कर देंगे। जिन्दगी ऐसे ही लोगों को सलाम करती है, और ऐसे ही लोगों के लिए सही अर्थों में जिन्दगी एक सुहाना सफर बन जाती है।
           तो आप भी बनायें अपने जीवन को सुहाना। यह सुहाना बने, इसी कामना के साथ मैं अनुमति चाहता हूँ। साथ ही यह भी चाहता हूँ कि आप हमें बतायें कि हम आपके लिए और क्या कर सकते हैं।
                                                                                                                                 डॉ॰ विजय अग्रवाल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें