बुधवार, 13 मई 2009

अपनी कमजोरियों से रू-ब-रू हों

वह मुझसे अनुरोध कर रहा था कि उसका ट्रांसफर किसी दूसरी जगह कर दिया जाए, क्योंकि दफ्तर में उसकी किसी से पट नहीं रही है। मैंने उसके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। अभी एक साल होने में कुछ दिन बचे थे कि वह फिर से उसी अनुरोध के साथ मेरे सामने उपस्थित था। मैंने इस बार भी उसकी बात मान ली। लेकिन जब वह तीसरी बार इसी उद्देश्य से आया, तो मैंने केवल उसके अनुरोध को ठुकरा दिया, बल्कि उसे डांट भी लगाई। असल में उसकी असली समस्या यह थी कि वह दूसरों को अपनी समस्या का कारण समझता था, जबकि सचाई यह थी कि वह खुद में ही एक समस्या था।

प्राचीन यूनान में जितने भी नाटक लिखे गए, ज्यादातर त्रासद नाटक थे। उनका समापन दुख में होता है, असफलताओं में होता है। भले ही हम उसके नायक के इस दुख और असफलता के लिए भाग्य को, समाज को, मित्रों को या फिर अन्य किसी को भी जिम्मेदार ठहराएं, लेकिन सचाई यही रहती है कि उस दुख और असफलता के कारण उस नायक के अपने व्यक्तित्व और चरित्र में ही निहित रहते हैं।

जिस दिन भी जिंदगी का यह सरल, सीधा और सच्च फलसफा समझ में जाता है, उसी दिन से जिंदगी में एक क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत हो जाती है।

वैसे नियम भी यही है कि जब हम दूसरों पर दोष लगाने के लिए अपनी तर्जनी को उसकी ओर उठाते हैं, तो नीचे की अंगुली अपने आप हमारे सीने की ओर उठ जाती है। दुर्भाग्य यह है कि नीचे रहने के कारण हम उसे देख नहीं पाते। लेकिन यदि बिल्ली अपनी आंखें बंद करके दूध पीने लगे, तो लोग उसे दूध पीते हुए नहीं देख सकेंगे? सच कड़वा होता है, लेकिन उसे जान लेने के बाद सच मीठा बन जाता है। अपनी कमजोरियों को जानना, सच को जानकर अपनी जिंदगी को खुशगवार और सफल बनाना है।

1 टिप्पणी:

  1. केवल जान लेने से ही कुछ नहीं होने वाला.बहुत सारी बातें हम जानते हैं मगर काम की तो वही होती हैं,जिनका हमें बोध होता है और जिनको हम व्यवहार में लाते हैं.

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