मंगलवार, 23 जून 2009

नए रास्तों पर चलें, सफलता आपके कदम चूमेगी

मंथन के मोती, भाग - ७
‘मंथन के मोती’ में मैं विजय अग्रवाल आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मेरे इस अभिनन्दन को स्वीकार करें।
मुझे विश्वास है कि आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी - ‘लीक छोड़ तीनो चले, शायर, सिंह, सपूत। यानी कि सच्चा कवि, शेर और सुपुत्र हमेशा बने बनाए रास्तों को छोड़कर नए रास्तों पर चलते हैं। ये वे लोग होते हैं, जो अपने लिए खुद रास्ता बनाते हैं। और बाद में इनके बनाए गए रास्ते पर दुनिया चलती है। ऐसे लोगों को आप नेतृत्त्व करने वाला कह सकते हैं।
सच तो यही है कि विश्व का आज जितना भी विकास हुआ है, जिन्होंने हमारे जीवन को इतना आसान बनाया है, वे ऐसे ही लोगों के कारण संभव हो सका है, जिन्होंने बने बनाए रास्ते पर चलने से इंकार कर दिया था। हालाँकि रास्ते तो थे और वे चाहते, तो उसी पर चलकर अपना जीवन पूरा कर सकते थे। लेकिन उन्हें वह स्वीकार नहीं था। उनके अन्दर कुछ कर गुजरने का जो तूफान उठ रहा था, उसके कारण उन्होंने नए रास्ते पर चलने का निर्णय लेकर दुनिया के लिए एक नया रास्ता तैयार किया।
तो आपके सामने इस बारे में मैं एक बहुत रोचक घटना पेश कर रहा हूँ, जो महान खोजी यात्री कोलम्बस से जुड़ी हुई है, उस कोलम्बस से जिन्होंने अमेरीका की खोज की थी।
एक बार कोलंबस को एक दावत में आमंत्रित किया गया, जहाँ उन्हें मेज पर सबसे सम्मानजनक स्थान दिया गया। उनसे ईष्र्या करने वाले एक व्यक्ति ने अचानक पूछा-‘‘आपने इंडीज को खोजा है। परन्तु क्या स्पेन में दूसरे लोग नहीं हैं, जो इस काम को करने में सक्षम हैं।’’
कोलंबस ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने एक अंडा उठाया और लोगों से कहा कि वे इसे एक सिरे पर खड़ा कर दें। सबने ऐसा करने की कोशिश की, लेकिन कोई न कर सका। इस पर कोलबंस ने उसे मेज पर ठोंका, उसके एक सिरे को पिचकाया और उसे खड़ा छोड़ दिया।
वह व्यक्ति चिल्लाया-‘‘इस तरीके से तो हम सब यह कर सकते थे।’’
कोलंबस ने जवाब दिया-‘‘हाँ, आप कर सकते थे, बशर्ते आप जानते कि ऐसा कैसे किया जा सकता है। इसी तरह एक बार जब मैंने आपको संसार का रास्ता दिखा दिया, तो उसका अनुसरण करने से आसान कुछ नहीं है।’’क्या आपको नहीं लगता कि आपके अन्दर भी एक छोटा-सा कोलंबस बैठा हुआ है और आप भी दुनिया के लिए कोई नया रास्ता तैयार कर सकते हैं। फिर चाहे वह छोटी-सी पगडंडी ही क्यों न हो। विश्वास कीजिए कि ऐसा है। लेकिन अधिकांश लोगों के साथ दिक्कत यह होती है कि हम अपने कंधे पर कुदाल लेकर नया रास्ता बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जबकि हमें यह साहस दिखाना चाहिए। यदि हम दूसरों के द्वारा बनाए रास्ते पर चल रहे हैं, तो यह हमारा धर्म बनता है कि हम भी एक नया रास्ता बनाएँ, जिस पर दूसरे चल सकें। मैं आपको सच बताऊँ कि इस रास्ते को बनाने का सुख बहुत अद्भुत होता है। यही तो वह चीज़ होती है जिसे आप पूरे गर्व के साथ कह सकते हैं कि ‘हाँ, यह मेरी है, क्योंकि इसे मैंने बनाया है।’’ सोचकर देखिए कि गर्व की यह अनुभूति कितना अधिक आनन्द देती होगी।
तो टटोलिए अपने अन्दर के उस कोलंबस को और आप जो कुछ भी कर रहे हैं सोचिए कि कैसे उसे नए तरीके से कर सकते हैं या कैसे उसमें कुछ नया डाल सकते हैं। आप पाएँगे कि आपका जीवन एक नया जीवन बन गया है।
तो इसी के साथ अब बिदा लेता हूँ। हमें आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
नोट- डॉ॰ विजय अग्रवाल के द्वारा दिया गया यह वक्तव्य जी न्यूज़ पर प्रतिदिन सुबह प्रसारित होने कार्यक्रम 'मंथन'में दिया गया था। उनका यह कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय है।

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