रविवार, 3 मई 2009

’गर्म’ चुनावी माहौल में शेखर सुमन की ’ठंडी’ इच्छा के मायने



’बिजनेस भास्कर’ के 30 अप्रेल के अंक में टी। वी। स्टार शेखर सुमन का एक बड़ा महत्वपूर्ण बयान छपा है, जो उन्होंने फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा के लिए दिया है। पूरा देश जानता है कि स्क्रीन के ये दोनों चेहरे बिहार में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। अब, जबकि चुनाव अपने क्लाइमेक्स पर है, शेखर सुमन का यह कहना क्या मायने रखता है, शेखर सुमन ही जानें। उन्होंने कहा है


”मैं बिहारी बाबू का बहुत सम्मान करता हूं। उन्होंने एक फोन भी किया होता, तो मैं उनके मुकाबले में खड़ा नहीं होता। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।”

तो क्या हम अपनी तरफ से यह मान लें कि शेखर सुमन, जो खुद भी एक बिहारी भी हैं, के मन में बिहारी बाबू को लेकर लम्बे समय से एक ग्रंथि, एक गांठ, एक काम्पलेक्स पल रही है, जिससे निजात पाने के लिए पर्याप्त सोचे-समझे बिना ही दन्न से वे चुनावी दंगल में आ डटे। अब शायद उन्हें लगने लगा हो कि चुनावी समर का क्षेत्रफल स्क्रीन की तुलना में लाखों गुना बड़ा और उबड़-खाबड़ होता है। इसलिए यह बयान दे डाला हो।


फिर यह भी कि राजनीति मूलतः व्यक्तियों की नहीं, बल्कि विचारों की लड़ाई है। यदि शेखर राजनीति में आये हैं, तो जाहिर है कि अपने साथ कुछ विचारों को लेकर भी आये होंगे। तो क्या एक फोन कर देने भर से वे सारे सिद्धांत खुले में रखे कपूर की तरह छू-मन्तर हो जाने चाहिए? यदि ऐसा ही है, तो बेहतर होगा कि राजनीति जैसे सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को निजी मित्रता और शत्रुता को भुनाने या आजमाने का कुरूक्षेत्र न बनाया जाए। राजनीति, चाहे वह जैसी भी हो, उसका जीवन पर तत्काल प्रभाव पड़ता है, और बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है।


लेकिन इन तर्कों के परे हम लोगों के लिए जो सबसे बड़ी बात और जरूरी बात है, वह यह है कि जब भी हम किसी भी नए क्षेत्र में प्रवेश करें, कभी भी इस तरह की अर्द्ध इच्छा या अनिच्छा से प्रवेश नहीं करना चाहिए, जैसा कि शेखर सुमन ने राजनीति में किया है। यदि शेखर पूरी इच्छा से आये होते तो एक फोन से उस इच्छा का त्याग कर देने की बात कभी नहीं करते।


जाहिर है कि जब भी हम किसी भी काम को आधे-अधूरे मन से करेंगे तो कभी भी हमारी क्षमतायें पूरी तरह सक्रिय होकर हमारा साथ नहीं देंगी। इससे यदि परिणाम भी आधे-अधूरे मिले या मिले ही नहीं, तो फिर आप इसके लिए किसे दोषी ठहरायेंगे? मैं मानता हूं कि ज्यादातर लोग दूसरों को, भाग्य को या परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहरातें हैं। लेकिन मैं स्वयं को दोषी ठहराता हूं।


अब देखते हैं कि जब 16 मई को लोकसभा के चुनाव परिणाम आयेंगे, तब क्या होता है?
डॉ॰ विजय अग्रवाल

8 टिप्‍पणियां:

  1. aise logon ko chunav ladne k liye tiket dene vale moorkh ho sakate hain lekin janata itnee moorkh nahi jo inhen vote dede
    -albela khatri

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  2. आदरणीय विजय जी ,
    आपने तो बहुत कुछ पहले किया है ..उम्मीद है अंतर्जाल पर भी
    काफी कुछ करेंगे .हिंदी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .
    शुभकामनाओं के साथ .
    हेमंत कुमार

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  3. हिंदी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .

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  4. हिंदी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .

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  5. हिंदी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .

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  6. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी
    www.abhivyakti.tk

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  7. बहुत सुन्दर बधाई स्वीकारें। मेरे ब्लोग पर आने की जहमत उठाएं। शुभकामनाएं।

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